ভারাক্রান্ত মন নিয়ে টেলিভিশনে লতাজীর শেষযাত্রা ও শেষকৃত্যের লাইভ সম্প্রচার দেখতে দেখতে কেন জানিনা বারবার মনটা চলে যাচ্ছিল ১৯৮৩ সালের ২৫শে জুন তারিখের লর্ডসের বিশ্বকাপ ফাইনালের আগে, আর মাথায় ঘুরছিল সেই ষাটের দশকের হিট গানটা “যো ওয়াদা কিয়া উহ নিভানা পড়েগা”। ম্যাচের আগে অধিনায়ক কপিলদেব সহ-খেলোয়াড়দের বলেন, “Our life is going to change in the next six hours. No matter what, we’ve to give it our best shot. … Let’s play well and enjoy ourselves. … “ – অধিনায়ক ও দলের খেলোয়াড়রা মিলে এই ‘ওয়াদা’ পূর্ণ করে ইতিহাস রচনা করেছিলেন, এটা তো আমরা সবাই জানি। তবে এরপর অন্য একটা ‘ওয়াদা’ পূরণ করতে লতাজীকে এগিয়ে আসতে হয়েছিল। কি ব্যাপার? সংক্ষেপেই বলি কারণ অনেকেই হয়ত জানেন।
সেইসময় ভারতীয় ক্রিকেট বোর্ডের হাতে যথেষ্ট অর্থ ছিলনা বিশ্বকাপজয়ী দলকে পুরস্কৃত করবার জন্য। বোর্ড-সভাপতি এন কে পি সালভে, দিল্লির কিছু প্রভাবশালী ক্রিকেট-প্রেমীর সহায়তায়, দিল্লির ইন্দিরা গান্ধী ইন্ডোর স্টেডিয়ামে এক সঙ্গীতানুষ্ঠানের আয়োজন করেন যেখানে প্রধান শিল্পী ছিলেন লতাজী। সাফল্যমন্ডিত এই অনুষ্ঠান থেকে সংগৃহীত অর্থ থেকে ভারতীয় দলের সব খেলোয়াড় প্রত্যেকে এক লাখ টাকা করে পুরস্কার পান যা তখনকার দিনে অনেক। এই উপলক্ষে একটি বিশেষ গানও লতাজী গেয়েছিলেন, “ভারত বিশ্ব বিজেতা, অপনা ভারত বিশ্ব বিজেতা”। [সম্পূর্ণ গানটি নিচে দিলাম – ইন্টারনেট থেকে সংগৃহীত]
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता,
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता |
संग है विश्व विजेता अपना , संग है विश्व विजेता,
संग है विश्व विजेता अपना , संग है विश्व विजेता |
हरेक दिशा में विजय मिले हमें , इसका बल है देता ,
हरेक दिशा में विजय मिले हमें , इसका बल है देता |
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता,
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता |
एक तरफ भारत के खिलाडी, एक तरफ था सारा जहाँ ,
एक तरफ भारत के खिलाडी, एक तरफ था सारा जहाँ |
जहां एकता , वहा सफलता , जहा मनोबल , विजय वहा |
खेले अपने खिलाडी यूं , था कौन जो टक्कर लेता ?
खेले अपने खिलाडी यूं , था कौन जो टक्कर लेता ?
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता,
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता |
संग है विश्व विजेता अपना , संग है विश्व विजेता,
संग है विश्व विजेता अपना , संग है विश्व विजेता |
खेल की दुनिया में भारत ने लिखा है इतिहास नया ,
खेल की दुनिया में भारत ने लिखा है इतिहास नया ,
जित सदा कायम रखने को जगा है विश्वास नया |
यही हाथ है लाए है विजय ये, यही तो भाग्य प्रणेता ,
यही हाथ है लाए है विजय ये, यही तो भाग्य प्रणेता |
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता,
भारत विश्व विजेता अपना , भारत विश्व विजेता |
संग है विश्व विजेता अपना , संग है विश्व विजेता,
संग है विश्व विजेता अपना , संग है विश्व विजेता |
वंदे मातरम , वंदे मातरम . वंदे मातरम |
वंदे मातरम , वंदे मातरम . वंदे मातरम |
वंदे मातरम , वंदे मातरम . वंदे मातरम |
চলে আসি ২০১২ সালের ১৬ই মার্চ – মীরপুরে জীবনের শততম আন্তর্জাতিক শতরানটা করেন শচীন তেনডুলকর, এটাও আমরা অনেকেই জানি। যেটা হয়ত অনেকেরই মনে নেই সেটা হচ্ছে এইরকম – এর অল্প কিছুদিন পরে, মুম্বই ইন্ডিয়ান্স দলের পক্ষ থেকে নীতা ও মুকেশ অম্বানি শচীনের এক সম্বর্ধনা অনুষ্ঠানের আয়োজন করেন যেখানে লতাজী শচীনের জন্য সঙ্গীত পরিবেশন করেন।
আজ শচীনকে শিবাজী পার্কে লতাজীর অন্তিম শয্যায় শ্রদ্ধানিবেদন করতে দেখে সেইসব কথা মনে ভেসে আসছিল।
শেষ করি একটা পুরনো কথা দিয়ে। মনসুর আলি খান পতৌদির প্রিয় গানগুলোর একটা ছিল “হাওয়ামে উড়তা যায়ে মেরা লাল দুপাট্টা মলমলকা” – মেজাজ খুশ থাকলে তিনি নাকি মাথায় ওড়না বেঁধে এই গানটার তালে তালে নেচে ঘনিষ্ঠমহলের আত্মীয়-বন্ধুদের আড্ডায় আসর জমাতেন। সেই স্মৃতিতে ওপরের ছবিটাতে রইলেন ঐ দুজন অনন্য ভারতীয়।